ढंढोरची का चिट्ठा : क्या देश के प्रधानमंत्री का इस तरह अपमान जायज है?

Sunday, August 26, 2007

आज परमजीत बाली जी ने अपनी पोस्ट मे एक लिंक दिया है उत्सुकतावश मैने क्लिक किया जो सीधे मुझे ढंढोरची जी के ब्लॉग पर ले गया वहाँ पर जाकर एक मनमोहन जी के ऊपर एक बेकार सी और फ़ूहड् कविता लिखी हुई थी जो किसी भी देशवासी को बर्दाश्त नहीं होंगी.
बेकारी में लिखा गयी एक कविता जो एक निराशा का प्रतिनिधित्व कर रही है समझ से परे है।

ये कविता इस प्रकार है.....

जागो मनमोहन प्यारे जागो।
सोनिया की गोद से बाहर निकलो, देशको जरा सम्भालो॥
पद का मोह डुबाए मनमोहना,अपने होश सम्भालो।
देश का बटाँधार हो रहा,अब तो नीदं से जागो॥
बढी महँगाई रोती जनता,चहौं दिस हा हा कारो।
कान मे रूई डाल बैठे क्यूँ भाया, कैसे हो सरदारो॥
शर्म से सिर झुक-झुक जाएं उनका,किसने जाए पुकारो ।
कहत ढंढोरची सुन इज्जत रख सिख की,बन के शेर दहाड़ो ॥


सोनियां गांधी जिन्होने देश के लिये पद का लालच नहीं करते हुये देश को मिसाल दी थी आज उन्हीं को मनमोहन सिंह जी की माँ के समान दर्जा दे दिया। सिख और सरदार ये शब्द जातिवाचक नहीं लगते? क्या हक है किसी धर्म को अपना निशाना बनाकर व्यंग्य करना.
उस पर दो क्रपालुओं ने अपनी टिप्पणी भी करके उनको लगे हाथ बधाई भी दे डाली.
Jasmeet.S.Bali said...
पढ कर मजा आ गया । सही लिखा है आपने।
anupam said...
ऐसा सही कहा है जिसे सिर्फ़ हिम्मत वाले ही सराहेगें ।


अब आप ही बतायें कि क्या देश के प्रधानमंत्री को इस तरह सार्वजनिक रूप में अपमानित करना किस न्याय की बात है? अगर कोई कानून यां अर्थव्यवस्था से दुखी है तो क्या वो हमारी न्याय-पालिका और वित्त मंत्रालय से गुहार कर सकता है?
रही बात महंगाई की तो बंधु आज भी तुम दो-तीन हजार में अपना घर चला सकते हो बशर्ते कि तुम अपने अतिरिक्त खर्चे जैसे मोबाईल,कार,केबल टी.वी. त्याग दो क्योंकि लोगों की बढती दिखावेपन की प्रव्रत्ति से आम आदमी को कोई लाभ तो नहीं हुआ है उल्टा वो कर्ज और लोन जैसे चक्करों में आकर अपना बेडागर्क किये जा रहा है और दोष दे रहा है अपने ही देश के प्रधानमंत्री को और हमारी सरकार को.

तो प्यारे ढंढोरची भाई आप अपने लेखन की गुणवत्ता को सुधारेंगें ये मुझे आपसे उम्मीद है.

5 comments:

Sagar Chand Nahar said...

देखिये भाई प्रधानमंत्रीजी के मान अपमान की बात नहीं करता मैं पर आपके शब्दों पर ध्या्न दिलाना चाहूंगा , आपने लिखा कि दो तीन हजार में गुजारा कर सकते हो। तो भाई इस बात पर आपसे इतना कहना चाहूंगा कि या तो आपके उपर घर चलाने की जिम्मेदारी नहीं आई है, या फिर आपने रुपयों की कीमत जानी ही नहीं। ( दो हजार में कितने शुन्य लगते हैं?)
भाई एक छोटे से छोटे शहर में भी आज दो हजार में मकान किराये पर नहीं मिलता कोई तीन हजार में अपना गुजारा खाक चला पायेगा। बच्चों की फीस , दवा, सब्जी , दूध क्या क्या नहीं चाहिये....
भैया कहना बहुत आसान है, एक दिन चला कर दिखाओ तो जानें। सीधे शब्दों में कहें तो पर उपदेश कुशल बहुतेरे वाली बात है यह।

मैं यह सब इसलिये लिख रहा हूँ भाई कि मेरे पास ना मोबाईल है ना ही गाड़ी। इतना होते हुए भी सब मिला कर पाँच साढ़े पाँच हजार में भी गुजारा नहीं होता।
माननीय प्रधानमंत्री जी के लिये अगर सरदारों शब्द का उच्चारण अगर किया गया है तो आप जान लीजिये कि सरदारजी सिर्फ मजाक का शब्द नहीं है सम्मान से भी सरदारों या सरदारजी कहा जा सकता है।

परमजीत सिहँ बाली said...

जहाँ तक मैने अपनी छोटी -सी बुद्दि से जाना है कि मनमोहन सिहँ एक बहुत काबिल इन्सान हैं ।क्यूँकि वे एक राज नेता ही नही, बहुत पढे लिखे इन्सान भी हैं।अगर वे अपनी बुद्दि से देश को चलाए तो देश के प्रति उनका बहुत उपकार होगा...लेकिन सब जानते हैं कि राज कौन चला रहा है?...लेकिन जिन्हे आप त्यागी बता रहे हैं....जिनमे आपको त्याग नजर आ रहा है कही...आप जानते हैं त्याग क्या होता है?...अगर उन्हें त्याग ही करना होता तो वह भी मदर टरैसा जी की तरह समाज की सेवा मे लग जाती....।..आप का विरोध करने का हक है लेकिन ...मै स्पष्ट करना चाहूँगा कि उस पोस्ट का लिकं मैने अपने चिट्ठे पर इस लिए दिया है कि मै मानता हूँ कि वह गीत...शायद सिखों की बहादुरी को ब्यान करने के लिए लिखा है....अगर मै गलत नही तो शायद कवि देश को मनमोहन सिहँ जी अपने ढंग से चलाए यह कहना चाह रहा है...क्यूँकि उनकी काबलियत पर किसी को शक नही ही होगा..

debashish said...

पर मेरे ख्याल से इसमें कोई बुराई नहीं कि प्रधानमंत्री का मज़ाक उड़ाया जाय। अमरीका में आप जानते ही हैं कि किसी राजनेता को नहीं छोड़ा जाता। शेखर सुमन के शो के समय से भारतीय मीडिया में पॉलिटिकल सटायर और मिमिक्री का दौर आया जिसे मैं स्वस्थ लोकतंत्र का प्रतीक मानता हूँ। वरना होली काउ बना कर रखने से किसी की भी आलोचना करना मुश्किल हो जायेगा। जब तक धर्म, व्यक्तिगत मामलों पर टीकाटिप्पणी न हो आलोचना तो जायज है।

Anonymous said...

ओ,मूर्खानंद महाराज,अगर कविता को समझने के लिए दिमाग नही है तो अलोचक काहे बनने का यत्न कर रहे हो? हमने भी पढी है ढंढोरची की कविता।यहाँ किसी धर्म को निशाना कहाँ बनाया गया है?तरस आता है तुम्हारे सोच पर।
क्या तुम किसी की चम्चागिरी को गुणवत्ता लेखन का दरजा देना चाहते हो....तुम्हारी त्याग की मूर्ती का बखान यहाँ सुरेश जी के चिठ्ठे पर हो रहा है जरा उसे पढ लेना...शायद तुम्हारी अक्ल के दरवाजे खूल जाए...खुदा तुम्हें सुमति दे...

ePandit said...

मुझे नहीं लगता कि इस कविता में मनमोहन जी का अपमान किया गया है। उनकी योग्यता पर किसी को शक नहीं लेकिन ये सभी जानते हैं कि वो सोनिया गांधी की कठपुतली बन कर रह गए हैं।

ये कविता एक सटायर है जिसे शायद हर कोई न समझ सके।

और भाई आप बात कर रहे हैं कि दो हजार तो बिजली पानी के बिलों में ही लग जाते हैं, काम चलाना दूर की बात।