आज भगदड् शैशव अवस्था में है लेकिन जल्द ही अपने रूप को प्राप्त करनें में इसे वक्त नहीं लगेगा क्योंकि जिस प्रकार से हिन्दी पत्रकारिता का उत्थान हिन्दी ब्लॉग्स और फ़ीड एग्रीग्रेटरो और वेबसाइटों के द्वारा हो रहा है वो निःसन्देह प्रशंसा के योग्य है
वाकई हिन्दी के विकास मे इन सबका योगदान अविस्मरणीय और महान है।लेकिन साथ ही साथ हम यह भी जोडना चाहेंगें कि हम जो कोई भी हैं हिन्दी के अपमान और बेहिसाब फ़ैलते आक्रोश को बर्दाश्त नहीं करेंगे और हमारे साथ जुडने वाले तमाम सम्माननीय लेखकों से अनुरोध है कि वो अगर विवादों को नया रूप और उसे सही रूप में दिखानें की कोशिश कर सकते हैं तो उनका स्वागत है।
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ढंढोरची का चिट्ठा : क्या देश के प्रधानमंत्री का इस तरह अपमान जायज है?
आज परमजीत बाली जी ने अपनी पोस्ट मे एक लिंक दिया है उत्सुकतावश मैने क्लिक किया जो सीधे मुझे ढंढोरची जी के ब्लॉग पर ले गया वहाँ पर जाकर एक मनमोहन जी के ऊपर एक बेकार सी और फ़ूहड् कविता लिखी हुई थी जो किसी भी देशवासी को बर्दाश्त नहीं होंगी.
बेकारी में लिखा गयी एक कविता जो एक निराशा का प्रतिनिधित्व कर रही है समझ से परे है।
ये कविता इस प्रकार है.....
जागो मनमोहन प्यारे जागो।
सोनिया की गोद से बाहर निकलो, देशको जरा सम्भालो॥
पद का मोह डुबाए मनमोहना,अपने होश सम्भालो।
देश का बटाँधार हो रहा,अब तो नीदं से जागो॥
बढी महँगाई रोती जनता,चहौं दिस हा हा कारो।
कान मे रूई डाल बैठे क्यूँ भाया, कैसे हो सरदारो॥
शर्म से सिर झुक-झुक जाएं उनका,किसने जाए पुकारो ।
कहत ढंढोरची सुन इज्जत रख सिख की,बन के शेर दहाड़ो ॥
सोनियां गांधी जिन्होने देश के लिये पद का लालच नहीं करते हुये देश को मिसाल दी थी आज उन्हीं को मनमोहन सिंह जी की माँ के समान दर्जा दे दिया। सिख और सरदार ये शब्द जातिवाचक नहीं लगते? क्या हक है किसी धर्म को अपना निशाना बनाकर व्यंग्य करना.
उस पर दो क्रपालुओं ने अपनी टिप्पणी भी करके उनको लगे हाथ बधाई भी दे डाली.
Jasmeet.S.Bali said...
पढ कर मजा आ गया । सही लिखा है आपने।
anupam said...
ऐसा सही कहा है जिसे सिर्फ़ हिम्मत वाले ही सराहेगें ।
अब आप ही बतायें कि क्या देश के प्रधानमंत्री को इस तरह सार्वजनिक रूप में अपमानित करना किस न्याय की बात है? अगर कोई कानून यां अर्थव्यवस्था से दुखी है तो क्या वो हमारी न्याय-पालिका और वित्त मंत्रालय से गुहार कर सकता है?
रही बात महंगाई की तो बंधु आज भी तुम दो-तीन हजार में अपना घर चला सकते हो बशर्ते कि तुम अपने अतिरिक्त खर्चे जैसे मोबाईल,कार,केबल टी.वी. त्याग दो क्योंकि लोगों की बढती दिखावेपन की प्रव्रत्ति से आम आदमी को कोई लाभ तो नहीं हुआ है उल्टा वो कर्ज और लोन जैसे चक्करों में आकर अपना बेडागर्क किये जा रहा है और दोष दे रहा है अपने ही देश के प्रधानमंत्री को और हमारी सरकार को.
तो प्यारे ढंढोरची भाई आप अपने लेखन की गुणवत्ता को सुधारेंगें ये मुझे आपसे उम्मीद है.
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4:33 PM
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भगदड् : अब हम भी जुड् गये हैं
आज किसी अनामदास ने हमें इस ब्लॉग पर पहली पोस्ट लिखने के लिये आमंत्रित किया तो हमें लगा शायद ये नाम और ब्लॉग हम जैसे लोगों के लिये ही बनाया हुआ है जो किसी भी विवाद को तब तक जारी रख सकते है जब तक उसका उचित हल ना निकले।
साथ ही साथ हमारे साथियों ने भी इसे हाथों-हाथ लिया है क्योंकि वो सभी लोग भी एक अलग सार्थक मंच चाहते थे।
अब ये मंच आगे क्या गुल खिलायेगा ये आगे चलने पर ही पता चलेगा।
मेरी शुभकामनायें
कमलेश मदान
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kamlesh madaan
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